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Thursday, November 5, 2009

"लौड़ी घोड़ी"


"लौड़ी घोड़ी" मेरी भाभी की उम्र 21 साल की थी, और मैं 18 साल का था। भाभी ने बीए फ़ाईनल की परीक्षा दी थी और मुझे रिजल्ट लेने भाभी के साथ उज्जैन जाना था। उज्जैन में ही कुछ ऐसा हुआ कि मैं और भाभी बहुत ही खुल गए।मैं और मेरी भाभी रतलाम से सवेरे रवाना हो कर उज्जैन आ चुके थे। स्टेशन पर उतरते ही सामने एक होटल में रूम बुक करा लिया। कमरा अच्छा था। डबलबेड टेबल बाथरूम सभी कुछ साफ़सुथरा था। मैंने और भाभी ने
स्नान किया और यूनिवरसिटी रवाना हो गये। वहां से हमने भाभी का रिजल्ट कार्ड लिया। दिन भर उज्जैन के पवित्र स्थलों के दर्शन किये और होटल वापस आ गये। शाम को हमारे पास कोई काम नहीं था।अचानक भाभी बोली चलो पास में पिक्चर हॉल है ...चलते हैं, थोड़ा समय पास हो जायेगा।हम दोनों हॉल में पहुँच गये। कोई अंग्रेजी फ़िल्म थी। पर वह फ़िल्म बहुत सेक्सी निकली। बहुत से सीन चुदाई के थे उसमें ! थोड़ी थोड़ी देर म��
�ं नंगे और चुदाई के सीन आ जाते थे। पर ये सीन ऐसे थे कि अंधेरे में फ़िल्माये गये थे, पर ये सीन इस तरह फ़िल्माये गये थे कि लण्ड और चूत के अलावा सब दिख रहा था।जब सीन आते तो भाभी मुझे तिरछी नजर से देखने लगती। भाभी की कम उम्र थी, और उस पर इन दृष्यों का सीधा असर हो रहा था और उसकी जवानी का उबाल बेलगाम था। थोड़ी थोड़ी देर में वो मुझे छूने लगी फिर मुझ पर उसका असर देखती। मैं भी कम उम्र का ही था...भाभी गरम ��
�ोती जा रही थी। भाभी ने जब मेरी तरफ़ से कोई ऑब्जेक्शन नहीं पाया तो तो वो आगे बढ़ी और मेरे हाथ पर अपना हाथ धीरे से रख दिया। मैंने भाभी की तरफ़ देखा तो उसकी बड़ी बड़ी गोल आंखे मुझे ही देख रही थी। हम दोनों की नजरें मिली और हम आंखों ही आंखों में देखते हुए एक दूसरे में खोने लगे। उसका हाथ मेरे हाथ को दबाने लगा। मैं एक बार तो सिहर उठा। मैंने भी अब उत्तर में उसका हाथ दबा लिया।मेरा लण्ड भी अब उठने लग��
� था, पर भाभी बहुत ही गरम हो चुकी थी। उसने मेरी जांघ पर हाथ रख दिया और लण्ड की तरफ़ बढ़ने लगी और अपनी आंख से इशारा किया.....मेरा दिल धड़क उठा। उसने अचानक ही मेरे लण्ड पर हाथ रख दिया और अंगुलियों से उसे दबा दिया। "हाय रे !" मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी।"क्या हुआ?" उसने और जोर से दबाते हुएकहा।सेक्सी सीन परदे पर आ जा रहे थे।"मजा आया ना !" भाभी ने फ़ुसफ़ुसाते हुए पूछा।मैंने भी हाथ उसकी पीठ पर से सरकाते
हुए उसके बोबे थाम लिये और हौले हौले से सहलाने लगा। उसके भरे हुए मांसल बोबे और निपल उत्तेजना से कड़े हो कर तन गये थे।"तुम्हें भी मजा आया भाभी?""हां रे...बहुत मजा आ रहा है।" फिर मेरी ओर देख कर बोली "अभी और मजा आयेगा, देख !" उसने मेरे लण्ड को जोर से दबादिया।"भाभी, हाय रे... !""खूब मजा आ रहा है ना ऐसे, तेरा लण्ड तो मस्त है रे !" एकाएक भाभी ने देसी भाषा का प्रयोग किया और उनका स्वर सेक्सी हो उठा।"भाभी, चलो
होटल चलते हैं, यहाँ कुछ ठीक नहीं है।" मैं अब भड़क उठा था। "नहीं विजय, अभी बोबे और मसलो ना... !" उसकी फ़ुसफ़ुसाहट से लगा कि उसे बहुत ही मजा आ रहा था। पर मैं खड़ा हो गया, मुझे देख कर वो भी खड़ी हो गई। हम बाहर निकल आये और होटल आ गये। रास्ते भर भाभी कुछ नहीं बोली। हम कमरे में आ गये और कपड़े बदल कर मैंने पजामा और बनियान पहन ली और भाभी भी मात्र पेटीकोट और ब्लाऊज पहन कर आ गई। मेरी एक दम से कुछ करने की हिम्मत
नहीं हुई। पर भाभी तो वासना में झुलस रही थी। चुदने के इरादे से बोली,"विजय तुम्हे लौड़ी घोड़ी खेलना आता है?" उसने पूछा।"नहीं तो, तुम्हें आता है?"'अरे हां, बहुत मजा आता है, खेलोगे?""कैसे खेलते है, कुछबताओ !"" देखो मैं तुम्हारी आंखो पर रुमाल बांध देती हूँ, फिर मैं जो कहूं तुम्हें मेरा वो अंग छूना है, अगर कोई दूसरा अंग छू लिया तो आऊट और सजा में तुम्हें घोड़ी बनाना होगा और तुम्हारी गाण्ड में अंगुली ��
�ालूंगी। अगर सही छुआ तो तुम्हारा लण्ड चूत में डालूंगी...तुम भी यही करना।"मुझे सनसनी आने लगी। ये तो बढ़िया खेल है। मुझे तो दोनों तरफ़ से फ़ायदा है, वो हारी तो भी घोड़ी बनेगी और जीती तो चुदेगी। हां पर हारने पर मुझे घोड़ी बनना पड़ेगी। पर खेल मजेदार लगा, था चुदाई का सेक्सी खेल।भाभी तो हर हाल में चुदने को तैयार थी। ये तो जवानी का तकाजा था। भाभी बेशरम हो चली थी। उसने अपने कपड़े मेरे सामने ही उतार द�
��ये। भाभी को नंगा देख कर मेरा लण्ड खड़ा हो गया।भाभी ने मेरा खड़ा लण्ड देख लिया। और बोली,"अपना पाजामा तो उतारो...और अपने लण्ड को तो आज़ाद करो, देखो कैसा जोर मार रहाहै।"मैं शरमा गया, पर वो नहीं शरमाई। मैंने कपड़े उतार दिये। मेरा लण्ड बाहर निकल कर फ़ुफ़कारने लगा।मेरा लण्ड सहलाते हुए बोली,"अब बस नीचे वालों का ही काम है..... चलो खेले, देखो खेलते हुए भटक मत जाना, कंट्रोल रखना !"भाभी ने अब मेरी आँखों पर
रूमाल बांध दिया ...और कहा,"मेरे हाथ पकड़ो !"मैं उसे ढूंढने लगा... भाभी तेज थी ... मेरी तरफ़ गाण्ड करके बैठ गई। मैंने हाथ बढ़ाया और एक जगह अंगुलीरखी..."रख दी अंगुली।" मुझे लगा कि यह हाथ नहीं है...मैंने दूसरी जगह अंगुली रखी तो नाखून लगे।"यही है।" और पट्टी खोल दी वो पांव की अंगुली थी। पर भाभी को नंगा देख कर मैं बेहाल होने लगा। "अब बनो घोड़ी" मैं घोड़ी बन गया। भाभी ने अपनी एक अंगुली मेरी गाण्ड में घुसा दी �
��र अन्दर बाहर करने लगी। "मजा आया देवर जी।" भाभी का ये सब करना अच्छा लग रहा था। "भाभी, ठीक है कर लो, मेरा नम्बर भीआयेगा !"'देवर जी, गाण्ड तो बड़ी मस्त है तुम्हारी" भाभी ने मेरी गाण्ड की तारीफ़ की। मेरी गाण्ड को उसने थपथपाया और अपनी पूरी अंगुली घुसेड़ कर धीरे धीरे बाहर निकाल ली। अब मेरा नम्बर था।मैंने भाभी की आंख में रूमाल बांध दिया और कहा,"मेरी छाती पर हाथ रखो !"उसने बिना कुछ सोचे समझे जो सामन��
� आया, पकड़ लिया। देखा तो मेरे पेट पर हाथ था।"भाभी, घोड़ी बनो।" भाभी के तन की आग बढ़ती जारही थी। वो तुरंत घोड़ी बन गई। मैंने उसकी गाण्ड सहलाई और अपना तना हुआ लण्ड गाण्ड के छेद में लगा कर अन्दर घुसा दिया।"हाय, ये क्या, तुम्हें अंगुली घुसानी है.....लण्ड नहीं।" पर तब तक लण्ड जड़ तक पहुंच चुका था। भाभी ने तुरन्त पलट कर लण्ड निकाल दिया। मेरा गीला लण्ड कड़कता हुआ बाहर आ गया। मैंने अब अपनी अंगुली भाभी क
ी गाण्ड में घुसा दी।"अब धीरे धीरे अन्दर बाहर करो" मैं उसकी गाण्ड मेंअंगुली करता रहा। वह सिसकी भरती रही।"भाभी, प्लीज, यह लौड़ी घोड़ी रहने दो ना, मेरे लण्ड का तो कुछ ख्याल करो !""खेल के जो नियम है उसे तो मानना पड़ेगा ना, चलो अब मेरी बारी है, अपनी आंखे बन्द करो !" मैंने आंखे बन्द कर ली।"मेरी चूंचियां पकड़ो..." इस बार मुझे थोड़ा सा दिख रहा था। मैंने सीधे ही भाभी की चूंचिया दबा दी"नहीं ये तो बेईमानी है..
." वो कहती रही।"नियम तो नियम है" और मैंने उसे धक्का दे कर बिस्तर पर लेटा दिया और उस पर चढ़ गया। उबलता हुआ लण्ड मैंने उसकी चूत पर रख दिया। और अन्दर पेल दिया। भाभी पिघल उठी, उसने भी मदद करते हुये अपनी चूत उछाल दी और दोनों ही सिसकारी भरते हुए एक दूसरे से चिपक गये। लण्ड चूत में घुसता चला गया। भाभी ने अपने होंठ भींच लिये और जैसे उसे जन्नत मिल गई हो।"देवर जी, इस खेल में चुदाई से पहले जितना तड़पोग
े उतना ही मजा चुदाई में आता है,इसीलिये लौड़ी घोड़ी खेल खेलते है, और चुदाई के लिये तड़पते रहते रहते हैं।""हां भाभी, मेरा तो खेल खेल में माल ही निकलने वाला था।""तेरे भैया का तो कितनी ही बार निकल जाता था।"उसकी वासना तेजी पर थी। वो जोर जोर से उछल कर लण्ड ले रही थी। मैं उसकी नरम चूत को जम के धक्के मार रहा था। जवान चूत थी, पानी भी बहुत छोड़ रही थी, जड़ तक लौड़ा ले रही थी। उसकी मांसल चूंचिया छोटी मगर बे��
�द कड़ी थी। मसलने में बड़ा आनन्द आ रहा था। कुछ ही देर में मेरा वीर्य निकल पड़ा। उसकी चूत भी अन्दर से लहरा रही थी, वो भी झड़ चुकी थी।हम दोनों ने कुछ देर आराम किया फिर भाभी ने कहा,"देवर जी, हां तो आगे चले।""चलो खेलते हैं !" मैंने भी झट हां कर दी।"यह दूसरा दौर है। पहले खेल में तुम जीते थे, अब मैं तो घोड़ी बनी रहूंगी... तुम मेरे शरीर के किसी भी अंग को चाट सकते हो, अपनी लौड़ी को, यानी लण्ड को किसी भी छेद में
घुसा कर मजा ले सकते हो, चलो आंखे बद करो !"भाभी ने मेरी आंखें फिर रूमाल से बंद कर दी। अब वो बिस्तर पर झुक कर फिर से घोड़ी बन गई। मैंने जैसे ही अपना मुँह आगे बढ़ाया तो गाण्ड का स्पर्श हुआ। मैंने अपनी जीभ निकाली और जीभ उसके चूतड़ों पर फ़ेरने लगा। भाभी ने निशाना बांधा और गाण्ड का छेद सामने कर दिया। मेरी जीभ ने छेद पह्चान लिया और चाटने लगा और उसके छेद में भी जीभ डालने लगा।जैसे ही जीभ बाहर निकाल�
�� मुझे बालों का स्पर्श लगा, मेरी जीभ अब उसकी चूत चाट रही थी।मेरा लण्ड तन्ना रहा था। किसी भी छेद में घुस कर एक बार और अपना वीर्य निकालना चाह रहा था। मैंने अब रूमाल हटा लिया और उसे निहारा। उसके गोल गोल गोरे गोरे चूतड़ सामने उभरे हुए थे। भाभी मस्ती में अपनी आंखें बंद किये हुए थी। मैंने जल्दी से अपना लण्ड उसकी गाण्ड में घुसेड़ दिया। भाभी बोलउठी,"देवर जी, लौड़ी घोड़ी... हाय रे...लौड़ी घोड़ी...गाण्ड
चोद दो...हाय !"भाभी ने मस्ती में गाण्ड ढीली छोड़ दी...और लण्ड गाण्ड की गहराइयों में उतरता चला गया। मुझे तेज मीठी मीठी सी लण्ड में मस्ती लगी। टाईट गाण्ड थी। पर उसे दर्द हो रहा था, फिर भी मजा ले रही थी। कुछ ही देर में उसने कराहते हुए कह ही दिया," देवर जी, चूत की मस्ती दो ना...मेरा जी तो चूत चुदाने कर रहा है...देखो पानी भी छोड़ रही है !"मैंने उसकी बात समझी कि ये तो सिर्फ़ मर्दो का सुख है...औरत का सुख तो च
ूत में है। मैंने लण्ड निकाला और ... लौड़ी घोड़ी ... कहा और चूत में लण्ड घुसा डाला। अब उसे असली मजा आया। और घोड़ी बने बने ही चूत चुदवाने लगी। इस पोजिशन में लण्ड पूरा अन्दर जा रहा था। मेरे पेड़ू तक चूत से चिपक कर चोद रहा था।चुदाई तेज हो उठी। भाभी अपने मुँह से सिसकारियोँ के साथ मां बहन, भोसड़ी, कुत्ते जैसे गालियाँनिकालने लगी। मुझे लगा कि अब वो चरमसीमा पर आकर झड़ने वाली है। और मेरा अनुमान सही निक��
�ा... हम दोनों ही एक साथ झड़ने लगे। चूत में दोनों माल भरने लगा और माल आपस में एक हो गया। मैंने उसकी चूत से गिरते हुए माल को हाथ में लिया और चखा...फ़ीका फ़ीका सा, लसलसा सा, मुझे मजा नहीं आया। पर भाभी ने देखा तो मेरा हाथ पूरा चाट गई और चूत से माल हाथ में ले लेकर चाटने लगी।"खबरदार, जो मेरे माल को हाथलगाया ... लौड़ी घोड़ी में सारा माल मेरा होता है।अब तीसरा दौर... आप घोड़ी बनेगे और मैं आपकी लौड़ी यानी लण्ड न
ीचे से चूस चूस कर तुम्हारा शहद निकालूंगी, तुम घोड़ी की पोजिशन में चाहे मेरी चूत चाटो या कुछ भी करो।" पर दो चुदाई करने के बाद मैं थक गया था। मैंने जैसे कुछ सुना ही नहीं और पलंग पर लेट गया। वो मुझे झकझोरती रही पर मेरी आंखे नींद में डूबती चली गई। सवेरे जब उठे तो भाभी मेरे से चिपकी हुई नंगी ही सो रही थी।मुझे भाभी ने लौड़ी घोड़ी का खेल अच्छी तरह से सिखा दिया। कोई भी, चाहे लड़का हो या लड़की यह खेल �
��्री में खेल सकता है। मजे की गारण्टी है।

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