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Thursday, October 1, 2009

समुन्दर का किनारा

मैं मडगाँव, गोआ स्टेशन पर उतरी। 'जो' लपक कर मेरी बोगी के आगे आ गया
और मेरा सामान सामने वाले रेस्टोरेन्ट पर रख दिया। फिर वहां से लपक कर
दूसरी बोगी में गया और वहां से एक जोड़े को और ले कर आ गया।
मैं उन्हें जानती थी, विक्रम जो का पुराना मित्र है और लता विक्रम की
पत्नी। जो ने बताया कि उन्हें भी मैंने गोआ घूमने के लिये बुला लिया था
हम चारों स्टेशन से बाहर आ कर कार में बैठ गए। जो वहाँ से अपने घर ले
गया। सुबह का समय था हमने चाय-नाश्ता किया। फिर घूमने का कार्यक्रम बनाया।
गोआ अपने आप में कोई बड़ी जगह नहीं है। यहाँ से मात्र ३५ किलोमीटर दूर
पंजिम है और यहाँ कुछ ही दूर पर वास्कोडिगामा है। चूँकि आज हमारे पास
घूमने के अलावा कोई काम नहीं था, सो हमने पंजिम घूमने का कार्यक्रम बना
लिया। जो ने वहाँ पर किसी को फ़ोन किया और रवाना हो गये।
दिन के ११ बज रहे थे हम लोग बीच पर पहुँच गए थे। समुद्र का किनारा बहुत
ही सुहाना लग रहा था... लहरें बार-बार किनारे से टकरा कर लौट रहीं थीं। हम
सभी लगभग १२ बजे तक वहाँ रहे तभी जो को एक आदमी ने कुछ कहा और लौट गया।
"चलो...! लँच तैयार है...! "
सभी ने अपना सामान एकत्र किया और एक होटल की तरफ़ चल दिये। होटल पहुँच
कर वहाँ लँच लिया और फिर जो हमें ऊपर वाले भाग में ले गया... ऊपर कुछ कमरे
थे उसने खोल दिये और सभी से थोड़ा आराम करने को कहा। यात्रा की थकान तो थी
ही, सभी आराम करने क्या गये कि गहरी नींद में सो गये।
शाम को जो ने सभी को जगाया और कॉफी पिलायी। समय देखा तो ५ बज रहे थे।
हम सभी फ्रेश हो गये थे सो अब बीच पर दुबारा पहुँच गये। सभी ने स्वीमिंग
सूट पहन लिए थे। मैं और लता कम कपडों में थी उसका फ़ायदा जो और विक्रम
दोनों ही उठा रहे थे। जो तो पहले से ही मुझ पर मरता था। पर दिखाता ऐसे था
कि जैसे सिर्फ़ दोस्त ही हो। वो मेरे शरीर के एक-एक अंग का भरपूर जायज़ा
लेता था। मैं भी कपड़े ऐसे ही पहनती थी जिसमें जो मेरे उभार, कटाव और
गहराईयों को नाप सके। आज फिर उसे मौका मिल गया। विक्रम और लता तो लहरों
में खेलने लगे और मेरा पार्टनर जो बन गया। आज हम कुछ ज्यादा ही मस्ती कर
रहे थे। एक दूसरे को छेड़ भी रहे थे। कुँवारेपन का मजा बहुत ही रोमांटिक
होता है।
लहरें बढ़ने लगी थी... पानी का उछाल भी बढ़ रहा था। आकाश भी बादलों से
ढक गया था। सुरक्षा गार्ड ने आगाह कर दिया कि अब बीच छोड़ दो... शाम ढलने
लगी थी। हमने वापस लौटने का विचार किया। बादल चढ़ आए थे, किसी भी वक्त
पानी बरस सकता था। हम लोग जल्दी से सामने वाले होटल में पहुँचने की कोशिश
करने लगे। बूँदा-बाँदी शुरू हो चुकी थी... होटल में पहुँचते ही बरसात तेज़
होने लगी। जो ने कहा कि बरसात बन्द हो तब तक सभी लोग खाना खा लेते हैं।
हमें जो का सुझाव पसन्द आया। डिनर करके जो ने बाहर का जायज़ा लिया तो
बरसात तेज़ हो रही थी। होटल के मालिक ने जो को चाबी ला कर दे दी और कुछ
समझाया।
जो ने कहा,"आज तो यहीं सोना पड़ेगा। रास्ता भी बन्द हो गया है... चलो सभी ऊपर उन्हीं कमरों में चलो..."
मजबूरी थी रुकने की, पर हमें उससे कोई मतलब नहीं था... हम तो आये ही
घूमने के लिए थे। विक्रम और लता किनारे वाले कमरे में चले गये... मैंने
बीच वाला कमरा ले लिया... और जो ने दूसरी तरफ़ वाला कमरा ले लिया पर जो
मेरे कमरे में आ गया। उसकी फ़ेवरेट जिंजर वाईन ले कर बैठ गया। दो पेग मैंने
भी लिये। लगभग ११ बजे मैंने जो को गुडनाईट कह कर बिस्तर में सो गयी।
अचानक मेरी नींद खुल गयी। कोई मेरे शरीर को सहला रहा था। मुझे अच्छा तो
लगा... पर कौन था, ये... शायद जो था। मैंने अंधेरे में देखने की कोशिश की
पर एकदम अंधेरा था। मैं ज्योंही हिली सहलाना बन्द हो गया।
मैंने धीरे से आवाज दी,"जो ! जो !"
पर कोई उत्तर नहीं। मैंने साईड-लैम्प जलाया तो वहां कोई नहीं था। शायद
मेरा सपना था। मैं फिर से पसर कर सो गयी। मेरी नींद फिर खुल गयी। मेरे
चूतड़ों को किसी ने दबाया था। और अब वो चूतड़ों की दरार में हाथ घुसा रहा
था।
"हाँ जी... जो ! पकड़ा गये ना..." जैसे ही मैंने लाईट जलाई वहाँ कोई
नहीं था। पर जो के कमरे का परदा हिल रहा था। बरसात बन्द हो चुकी थी।
मैं उठ कर दरवाजे तक गई और झाँक कर देखा तो जो तो आराम से सो रहा था...
मैने सोचा- साला ! जो ! नाटक कर रहा है...! रुकता तो क्या हो जाता...
घूमने का और चुदाई का दोनों का ही मजा ले लेते। मैं वापस आ गयी और सोचा कि
इस बार तो पकड़ ही लूँगी। मैंने लाईट बन्द कर दी... पर अब नींद कहाँ...
थोड़ी ही देर में किसी ने मेरे बोबे सहलाये... मैंने तुरन्त ही उसके हाथ
पकड़ लिये।
"अब तो... जो पकड़े ही गये ना...!"
"श्श्श्श्श्शीऽऽऽऽऽऽऽ चुप रहो... और अपनी आँखें बन्द कर लो... प्लीज़...
मुझे शरम आती है !" उसने फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा। उसने एक रूमाल मेरे चेहरे पर
डाल दिया।
मैंने कहा,"जो.... तुम कुछ भी करो ना... मजा तो आएगा... लाईट जला लेते हैं...!"
उसकी ऊँगली मेरे होंठों पर आ गई यानि चुप रहूँ...। उसने हल्के-हल्के
मेरी चूचियाँ दबानी शुरू कर दीं। मैं बहुत दिनों से चुदी नहीं थी। इसलिये
मुझे बहुत ही उत्तेजनापूर्ण लगने लगा था। उसने मेरा टॉप ऊपर उठा दिया और
मेरे चूचुक चूसने लगा। मेरे मुँह से हाय निकल पड़ी। उसने मेरी पैन्ट उतार
दी... और मेरी चूत को सहलाने लगा। मेरा उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो रहा
था। मैंने अपनी दोनो टाँगें फ़ैला दीं। मुझे लगा कि अब वो मेरी टांगों के
बीच में आ गया है। उसके लण्ड का अहसास मुझे चूत पर होने लगा, उसका सुपाड़ा
मेरी चूत पर टिक ही गया। मेरी तो बरदाश्त से बाहर हो रहा था। मैने अपनी
चूत उछाल दी... नतीजा ये हुआ कि उसका गीला सुपाड़ा मेरी चिकनी और गीली चूत
में फ़क्क से घुस गया। मुझे लगा कि उसका लण्ड साधारण लण्डों से मोटा था और
शायद लम्बा भी था। बेहद गरम और कठोर लोहे जैसा। मेरी चूत की दीवारों को
रगड़ता हुआ गहराई में बैठ गया। मैं इतना तगड़ा लण्ड पा कर निहाल हो गयी।
"हाय जो...... क्या लन्ड है यार... इतना मोटा... हाय इतना लम्बा.... तुने तो आज मुझे मस्त कर दिया..."
उसका लण्ड फिर से बाहर निकला और फिर से सरसराता हुआ अन्दर बैठ गया...
मैंने जोश में रुमाल हटाने की कोशिश की पर उसने तुरन्त ही फिर से मेरे
मुँह को ढाँक दिया। मेरा शरीर उसके नीचे दबा हुआ था। मेरे शरीर को दबने से
पूरी संतुष्टि मिल रही थी। उसका लण्ड अब एक ही स्पीड से अन्दर बाहर चल रहा
था। मेरी चूत भी उसके मोटे लण्ड की वजह से टाईट थी... चूत की दीवारों पर
घर्षण बड़ा ही मीठी-मीठी गुदगुदी दे रहा था। उसके हाथ मेरी चूचियों को मसक
रहे थे... मसल रहे थे... चूचकों को खींच रहे थे।
"हाय जो... मर गयी, राम रे... कितना मज़ा आ रहा है... कैसा घुस रहा है चूत में..."
"श्शशऽऽऽ मत बोलो कुछ भी......." वो फ़ुसफ़ुसाया। उसकी फ़ुसफ़ुसाहट वाली
आवाज़ मुझे अनजानी सी लगी... फिर लगा कि जो ने ज्यादा पी ली होगी। उसका
लण्ड मेरी चूत में अन्दर-बाहर आता जाता बहुत ही आनन्द दे रहा था। उसके
चूतड़ गज़ब की तेज़ी से चल रहे थे... मैं भी उछल-उछल कर बराबर का साथ दे
रही थी। सच मानों तो ऐसी चुदाई बहुत दिनों बाद हुई थी। मेरी चूत काफ़ी गीली
हो चुकी थी और लण्ड भी मोटा होने से चूत में टाईट चल रहा था। फ़च-फ़च की
आवाज़ें भी आ रहीं थीं। मैं आनन्द से सरोबार हो रही थी... लग रहा कि अब
गयी...... अब गयी... निहाल हो रही थी...
"आ आऽऽऽ आऽऽऽऽ जोऽऽऽऽ हाय रे... मैं तो गयी ऊह्ह्ह ऊऽऽऽऽऽऽ मर गयी
रे... निकला मेरा पानी... जोऽऽऽऽ" मुझे लगा कि अब खुद को झड़ने से रोक
पाना मेरे बस में नहीं है...
"हाऽऽऽऽऽय जो मुझे दबा लो... मैं हो गयी हूँ... हाय... निकल गया रे...
मुझे दबा लो जो..." अब मैं रुक नहीं पाई... और झड़ने लग गई... उसके धक्के
धीरे-धीरे कम होते गये... जिससे मैं आराम से झड़ गयी... झड़ते हुए असीम
संतुष्टि मिल रही थी।
"हाय जो... पहले क्यों नही मिले तुम... कितनी शानदार चुदाई करते हो..."
"नेहा... नींद में क्या बोले जा रही हो... सच में चुदने की इच्छा है...?"
मैंने रुमाल चेहरे से हटा लिया। जो वहाँ खड़ा मुस्करा रहा था। कमरे में
अंधेरा ही था पर चूँकि जो के कमरे की लाईट जल रही थी इसलिये अच्छी रोशनी आ
रही थी।
"अब नहीं... अब तो मैं पूरी तरह से झड़ गयी हूँ...."
"क्याऽऽऽ....... बिना किए ही... क्या सपने में चुदाई की थी।" जो हैरानी से पूछ रहा था।
मैं बिस्तर से उठ बैठी और जो को प्यार से मुक्का मारा..." इतना तो चोदा... और कह रहे हो सपने मे... ये पकडो तुम्हारा रूमाल..."
"ये मेरा नहीं है... पर तुम्हारी बात समझ में नहीं आई..."
"हाय मेरे जो... समझ गयी... चलो हो जाये एक दौर और... तुमने कपड़े कब
पहन लिए... जानते हो इन १५ मिनट में तो तुमने मुझे निहाल कर दिया।"
"अरे मैं तो जो जो सुन कर यहाँ आया था... तुम तो यहाँ ऐसे कर रही थी जैसे तुम्हारी चुदाई हो रही हो.... यानि जैसे कोई सपना..."
"क्या... यहाँ कोई नहीं था... यानि मेरे साथ... तुम नहीं थे..."
"नहीं तो... तुम मुझे लगा बुला रही हो.... मेरी नींद खुल गयी... मैं यहाँ आया तो तुम मेरा नाम ले कर ऐसे कर रही थी कि..."
"बस-बस जो... मैं लपक कर विक्रम के कमरे में गई... वो दोनों भी बिस्तर पर नंगे गहरी नींद में सो रहे थे..."
क्या मैं सपना देख रही थी.... तो फिर वो रूमाल... मैंने चूत में हाथ डाल कर देखा... हल्का सा दर्द अब भी था...
सवेरा
हो चुका था... मन में उलझन बढ़ रही थी... जो बार-बार कह रहा था कि उसे एक
मौका दे दो... फिर रात को इतनी शानदार चुदाई कौन कर गया।
अगले दिन-
"उस बीच वाले कमरे में कल कौन सोया था..." हम चारों की नज़रें रूम-ब्वॉय की तरफ़ उठ गई...
"क्यों... क्या हुआ...?"
"उन कमरों में कोई नहीं ठहरता है... आप में बहुत हिम्मत है साब..."
"मतलब... तो बताना था ना... हमें बताया क्यों नहीं..."
"वो नये आये हैं... उन्हे नहीं पता हैं... वहाँ पर एक जोड़े को हनीमून
मनाते समय लड़के की हत्या कर दी थी... लड़की की तो किसी तरह बच गयी थी...
वो हत्यारे उनका सारा सामान लूट कर ले गये थे..."
"तो... उससे क्या..."
लड़का बहादुर था... बराबरी से लड़ा... पर अन्त बुरा हआ... कहते हैं कि उसकी आत्मा अब भी प्यासी है... हनीमून को तरसती है..."
मुझे चक्कर आने लगे... जो सब समझ चुका था... उसने मुझे सँभाल लिया। जो और मैं एक-दूसरे को देखने लगे...
"चलो अब घर चलते हैं... अगला कार्यक्रम तय करते हैं..." मैं अब जो का हाथ ही नहीं छोड़ रही थी डर के मारे...

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